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25 Oct 2021

महिलाओं की ग़ैर बराबरी का मिथक तोड़ना कमला भसीन के जीवन का मूलमंत्र था

25 सितम्बर 2021 को पितृ सतात्मक सोच में महिलाओं को बराबरी का हक दिलवाने वाली कमला भसीन की बुलंद आवाज एक माह पूर्व खामोश हो गयी। कमला भसीन का सेवा मंदिर से गहरा नाता रहा । वे 1972 में सेवा मंदिर आयी l भाई साब डॉ. मोहन सिंह मेहता ने राजस्थान विश्वविद्यालय से रिटायरमेंट पश्चात उदयपुर में सेवा मंदिर की शुरुआत कर दी थी। कमला जी जयपुर में डॉ मेहता के विद्यार्थी रहे, उन्ही के आग्रह पर वे आईंऔर ग्रामीण आदिवासी महिलाओ के साथ काम प्रारम्भ किया।

उनके साथ काम कर चुकीं जीनी श्रीवास्तव कहती है कि कमला जी यूनाइटेड नेशन्स, बैंकाक में कार्य करने के बाद जब भारत आई और महिला सशक्तिकरण पर कार्य कर रही थी तब मैं उनके संपर्क में थी। उनके साथ काम करके हमे लगा कि हम एक प्रभावशाली नारी के साथ काम कर रहे है।

वे सामाजिक कुरीतियों के विरुद्द जीवनभर संघर्षरत रही और ताउम्र महिलाओ को बराबरी का हक दिलवाने के मिशन पर डटी रही। सेवा मन्दिर के पूर्व महासचिव और उनके साथ काम कर चुके श्री हेमराज भाटी कहते है कि कमला जी जब सेवा मन्दिर आयी तब संभाग में बहुत गहन अकाल पड़ा था और लोग पलायन कर रहे थे l उस समय उन्होंने बहुत मेहनत की । उन्होंने जल पर कार्य किया और इसके साथ महिलाओं के जुड़ाव पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया।

कमला जी के शब्दों में "सेवा मंदिर में मेरा काम गरीबो के साथ मानव अधिकार और महिला विकास पर कार्य करना था। इससे मैंने असली शिक्षा सीखी है। मेरे गुरु थी गांव के आदिवासी महिलाएं...समझ आया कि गरीबो में औरतें ओर भी गरीब और दलितों में ओर भी दलित है।"


कमला जी सेवा मन्दिर में लिखना प्रारम्भ किया l वह हिंदी और अंग्रेजी में लिखती थी। उनके अंदर की लेखिका में हर औरत के लिए करुणा थी, प्रेम था। विद्वता के अहंकार से परे वह बहुत सहज थीं। उनके जीवन संघर्ष और लिखाई में कोई फर्क नहीं था।

सेवा मन्दिर में कार्य करते समय उनकी छोटी बहन बीना काक उनके साथ रहकर विद्या भवन में पढ़ती थी। कमला जी उदयपुर की पहली महिला थी जो मोटरसाइकिल चलाती थी। लोग आश्चर्य करते कि एक महिला मोटरसाइकिल चला रही है। कमला जी को गैर-बराबरी बर्दाश्त नही थी। चाहती कि महिलाएं बराबर हो । कुछ चीजें पुरुषो की पैतृक हुआ करती थी वो उनको नापसंद थी इसलिए जीन्स पहनकर बाजार में मोटरसाइकिल लेकर घूमती थी।

कमला जी लीक से हटकर काम करने वाली महिला थी - आत्मविश्वास से परिपूर्ण, बहुत साहसी और नवाचार करने वाली l सेवा मंदिर में कमला के सहयोगी कार्यकर्ता श्री राम प्रसाद जागिड कहते है की उस दौर में कोई महिला का किसी दूसरे व्यक्ति के साथ मोटर साइकिल पर बैठना स्वीकार नही होता था l इस मिथक को उन्होंने तोडा।



डॉ. मेहता ने सेवा मन्दिर में महिला सभा गठित की थी, उसकी वो संचालिका थी। सेवा मन्दिर में लिंग संवेदनशीलता पर प्रशिक्षण किये, जिसमें महिला-पुरुष सक्रियता से भाग लेते l आगे, लिंग संवेदनशीलता प्रशिक्षण सेवा मंदिर के महत्वपूर्ण अंग बने l अपने प्रशिक्षण के अनुभव पर कमला जी ने एक किताब लिखी जो बहुत प्रसारित हुई। वे लिंग संवेदनशीलता विषय पर पूरी दुनिया की जानी-मानी लीडर रही l

सेवा मन्दिर के बाद कमला जी यूनाइटेड नेशन में फूड एंड एग्रीकल्चर विभाग से जुडी और वहाँ 32 वर्ष काम किया । कमला भसीन का बचपन राजस्थान में गुजरा। पढाई के बाद नौकरी के लिए जर्मनी गई। 11 माह देश से दूर रहने के बाद देश में कुछ करने की इच्छा के साथ देश वापस चली आयी l

सेवा मन्दिर के पूर्व महासचिव श्री किशोर संत बताते है कि "उन्होंने सांस्क़ृतिक गतिविधियों में बहुत योगदान दिया ।" सेवा मन्दिर में पूर्व कार्यकर्ता गुलाब नूर खा कहते हे कि कमला जी से महिला पर कार्यशालाओ में मुलाक़ात एक विचारक और प्रशिक्षक के तौर पर हुई l महिलाओं के अधिकारों को लेकर उनका ज्ञान और अनुभव बहुत मजबूत और तर्क संगत था l उन्होंने महिलावादी सोच पर कई गीत, किताबे और आलेख लिखे जो आज भी हमारे मन-मस्तिष्क को आंदोलित करते है ।"

कमला भसीन जागोरी, संगत, वन बिलियन राइज़िंग जैसे संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़ी थी। उनका मानना था कि औरतों की लड़ाई पितृ सत्तात्मक समाज से बाहर निकलने के लिए है। कमला भसीन की शख्सियत को दुनिया के अनेक देशों में पहचान मिली l वे अनेक देशों में जाती और वहां की औरतों से जुड़े सवालों को जानती-समझती।

कमला भसीन के रूप में दक्षिण एशिया ने जोशीली और तर्कपूर्ण आवाज खो दी है। सेवा मंदिर उन्हें हमेशा एक सशक्त और समता को परिभाषित करने वाली शख़्सियत के रूप में याद रखेगा । हमारी प्रेरणा स्रोत के रूप में सदैव जीवंत रहेंगी ।


कमला जी को सादर नमन !

 

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